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बीए सेमेस्टर-2 - भूगोल - मानव भूगोल

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2715
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-2 - भूगोल - मानव भूगोल

अध्याय - 14
भारत की जनजातियाँ

(Indian Tribes)

भारत की जनसंख्या में जनजातीय जनसंख्या बहुत बड़ी मात्रा में पायी जाती है। भारत में इन्हें सामान्यतः जनजाति जनसंख्या अथवा अनुसूचित जनजातियाँ कहा जाता है। वस्तुतः अनुसूचित जनजातियां वे जनजातियाँ हैं जो भारतीय संविधान की धारा 342 में उल्लिखित हैं। इसमें वे जनजातियां, जनजातीय सम्प्रदाय या जनजाति तथा जनजातीय समुदायों के समूह या वर्ग शामिल किये गये हैं जो राष्ट्रपति की सार्वजनिक अधिसूचना द्वारा इस रूप में घोषित किये गये हैं। सन् 1950के संविधानिक आदेश के अनुसार भारत के 14 राज्यों की 212 जनजातियों को अनुसूचित जनजातियां घोषित किया गया है। सन् 1976 के संविधान संशोधन के जरिये अधिकतर जनजातियों पर से क्षेत्रीय प्रतिबंध हटा लिया गया है। अब भारत में रस अनुसूची में आने वाली 365 जनजातियाँ हैं। भारत की अनुसूचित जनजातियों के लोग देश के आदिवासी या देशी लोग हैं और इन्हें कई नामों यथा वन्य जाति, अरण्य निवासी, देश के आदि स्थायी इत्यादि नामों से पुकारा जाता है। भारत में विश्व के सर्वाधिक जनजाति के लोग रहते हैं। ये लगभग 365 जनजातियों के अलग-अलग समूह में फैले हुए हैं। वर्ष 1961 की जनगणना के अनुसार इन जातियों की संख्या देश की कुल आबादी का लगभग 6.87% थी। 1951 से लेकर 1991 की अवधि में इनकी जनसंख्या में 2.6 गुना वृद्धि हुई। भारत में इन जनजातियों का वितरण बहुत ही असामान्य है और इसका मुख्य कारण इन जनजातीय लोगों की एकांत तथा जंगलों में रहने की प्रवृत्ति हैं। भारत में जनजातियों के वितरण को दो भागों में मुख्य रूप से बांटा जा सकता है— (1) मध्यवर्ती भारत (2) उत्तरी पूर्वी भारत। भारत के 11 राज्यों में जनजाति आबादी की लगभग 85 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। भारत की जनजातीय में संथाल, गोंड, भील, थारू, गद्दी, नागा, भोटिया आदि मुख्य हैं। नागा जनजाति उत्तर-पूर्व में नागालैण्ड, राज्य, पर कोई पहाड़ियों, मणिपुर के पठारी भागों तथा असम व अरुणाचल प्रदेश में पायी जाती है जबकि थारू लोग मुख्यतः उत्तर प्रदेश के नैनीताल, खीरी, पीलीभीत तथा बिहार के मोतीहारी जिले में पाये जाते हैं। भील जनजाति का निवास क्षेत्र राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात तथा मध्य प्रदेश के ऊबड़-खाबड़ वाले क्षेत्र हैं। राजस्थान के भीलवाड़ा क्षेत्र को भील जनजाति का मुख्य निवास स्थान माना जाता है। भोटिया प्रजाति के जनजातीय लोग उत्तरांचल के अल्मोड़ा जिले के उत्तरी-पूर्वी भाग में निवास करते हैं। इनके निवास क्षेत्र को 'भोट' नाम से जाना जाता है और यह तिब्बत-नेपाल सीमा पर त्रिभुजाकार रूप में फैला है। संथाल आदिम जनजाति के लोग छोटा नागपुर पठार के संथाल परगना में निवास करते हैं। संथाल परगना के निवासी होने के कारण ही इन्हें 'संथाल' कहा जाता है। गद्दी जनजाति 'के लोग हिमाचल प्रदेश के पश्चिमी भू भाग में 32" 3045° उत्तरी अक्षांश के मध्य पाये जाते हैं। इस प्रकार आदिम जनजातीय लोग देश के विभिन्न पहाड़ी भागों में फैले हुए हैं। इनकी शारीरिक संरचना तथा आदतों में भी काफी भिन्नता पायी जाती है। ये मुख्यतः कबीलों के रूप में झुण्ड बनाकर रहते हैं। इनके खान-पान की आदतें, सामाजिक रीति रिवाज धर्म, तथा अन्य प्रथायें एक दूसरे से भिन्न है। इनके सामाजिक स्तर में भी पर्यापत भिन्नता पायी

जाती है। इनके भोजन भी अलग-अलग होते हैं और इनके सामाजिक आचार-विचार तथा परम्परायें भी एक दूसरे भिन्न होती है। ये अलग-थलग तथा जंगलों में रहने के कारण या बाहरी दुनिया से कम धुल-मिल पाये हैं। इसके कारण इनमें शिक्षा का स्तर भी निम्न है तथा विवाह जैसी सामाजिक संस्था में थी पर्याप्त भिन्नता पायी जाती है।

महत्त्वपूर्ण तथ्य

भारत में आदिम जातियों को जनजाति अथवा अनुसूचित जनजाति कहा जाता है। संविधान के अनु0 342 में अधिसूचित जातियां जनजातियां कहलाती है।

1950 के संविधान के आदेश के अनुसार भारत में 212 जनजातियों को अनुसूचित जनजाति घोषित किया गया था।

1976 के बाद भारत में इस अनुसूची में अब कुल 365 अनुसूचित जनजातियाँ हैं इन्हें आदिवासी या देशी लोग कहा जाता है। इन्हें कई अन्य नामों यथा वन्य जाति, अरण्य जाति, वनवासी, देश के आदि स्वामी भी कहा जाता है। डॉ0 धुरिये ने इन्हें ‘पिछड़ा हिन्दू' कहा है।ये लोग अपनी सामाजिक मान्यताओं तथा परम्पराओं को बनाये हुए हैं।

1961 की जनगणना में भारत की कुल जनसंख्या का 6.87% जनजाति जनसंख्या थी। 1981 में यह आंकड़ा बढ़कर 7.76% हो गया।

1951 से 1981 के बीच इनकी जनसंख्या में 2.6 गुना वृद्धि हुई।

इस आबादी में सामान्य जनसंख्या में केवल 2.3% की वृद्धि हुई थी।

अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या में जो 365 जनजातियां सम्मिलित है, इन्हें तीन वर्गों में बांटा गया है—

1. द्राविड़यन जनजाति
2. मंगोलायड जनजाति तथा
3. तुर्की इरानियन जनजाति।

द्राविड़यन जनजाति में मुंडा, संथाल, गोंड तथा माल्स जनजातियां आती है।

द्राविड़यन जनजाति छोटा नागपुर पठार तथा उड़ीसा में पायी जाती है।

मंगोलायड जनजाति में जांगा, खुकिस, चकमास जनजातियाँ आती है।

मंगोलायड लोग असम, मेघालय तथा अरुणाचल प्रदेश की पहाड़ियों में पायी जाती है।

तुर्की-इरनानियन जनजाति को दो भागों में बांटा गया है—

(1) अफगान समूह
(2) बल्चो - बराहुई समूह |

पढाणा अफगान समूह की जनजाति है।

भारत में जनजातियों के वितरण को दो भागों में बांटा जा सकता है-

(i) मध्य वृत्ति भारत तथा
(2) उत्तरी-पूर्वी भारत।

भारत के 11 राज्यों में 85% से अधिक जनजातीय जनसंख्या निवास करती हैं।

पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली तथा चंडीगढ़ में अनुसूचित जनजाति जनसंख्या ही पायी जाती है क्योंकि यहां जलोढ़ मिट्टी तथा शहरीकरण पाया जाता है।

मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में 22.73% अनुसूचित जनजातीय जनसंख्या पायी जाती है।

महाराष्ट्र में 10.80% जनसंख्या पायी जाती है।

उड़ीसा में जनजातीय प्रतिशत 10.38 है।

बिहार तथा झारखण्ड में यह प्रतिशत 9.76 है।

गुजरात में 9.09 तथा राजस्थान में 8.08 प्रतिशत है।

मिजोरम की जनसंख्या में जनजातीय जनसंख्या का प्रतिशत 93.75 है।

नागालैण्ड में यह प्रतिशत 87.70% है।

मेघालय की जनसंख्या में जनजातीय प्रतिशत 85.33 है।

लक्षद्वीप में यह प्रतिशत 93.15 है।

अरुणाचल प्रदेश की कुल जनसंख्या का 63.66% जनजातीय है।

दादरा तथा नगर हवेली में यह प्रतिशत 78.99 है।

1991 की जनगणना के अनुसार जनजातीय जनसंख्या सर्वाधिक है।

गोवा में जनजातीय जनसंख्या सबसे कम है।

पंजाब तथा हरियाणा में जनजातीय जनसंख्या नहीं पायी जाती।

अनुसूचित जनजाति जनसंख्या का संकेन्द्रण मुख्य रूप से एकान्त पहाड़ी तथा जंगली क्षेत्रों में

पाया जाता है जहाँ पहुँचना कठिन है।

जनजातियाँ आर्थिक व सामाजिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों में पायी जाती है।

अनुसूचित जनजातियों के क्षेत्र संसाधनों की दृष्टि से समृद्ध होते हैं।

पंजाब तथा हरियाणा में अनुसूचित जनजाति का एक भी व्यक्ति नहीं पाया जाता

संथाल भारत की एक प्रमुख जनजाति है।

संथाल लोग कुशल कृषक, परिश्रमी तथा उत्तम आखेटक होते हैं।

संथाल हिन्दू, ईसाई तथा बौद्ध धर्म को मानते हैं।

संथाल जनजाति का जनसंख्या क्षेत्र झारखण्ड, उड़ीसा तथा पं0 बंगाल में 20 से 28 उत्तरी अक्षांश तथा 83 से 82 पूर्वी देशान्तर के बीच फैला है।

संथाल परगना क्षेत्र में रहने के कारण इनका नाम संथाल पड़ा।

संथाल लोग छोटा नागपुर पठार, हजारी बाग तथा पं0 बंगाल के वीरभूमि, बांकुरा, मिदनापुर तथा सरगना जिले में निवास करते हैं।

ये उड़ीसा के मयूरभंज जिले में भी निवास करते हैं।

संथाल लोगों की नाक, लम्बी उठी हुई, मुँह फैला हुआ तथा होंठ पतले होते हैं।

• संथाल लोगों का मुख्य भोगन “दाहा" है जो चावल से बनता है।

इनमें संयुक्त परिवार प्रथा प्रचलित है। परिवार का बड़ा व्यक्ति घर का मुखिया होता है। संथाल लोग मृत्यु के बाद मृतक शरीर का दाह संस्कार करते हैं।

इनके मुख्य त्योंहार 'सोहराई तथा बाह्य पूजा' है।

गोंड लोगों की अपनी अलग एक रियासत होती थी जिसे गोंडवाना लैण्ड कहा जाता था। गोंड जनजाति का मुख्य निवास क्षेत्र मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ आन्ध्र प्रदेश तथा उड़ीसा के पहाड़ी भागों में है।

ये लोग मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा, वेतूल, सिमोनी, बाला घाट, मांडला, रायसन, खारगाँव जिले में रहते हैं।

गोंडलोग काले तथा गहरे भूरे रंग के होते हैं तथा शरीर सुडौल होता है।

चावल तथा मोटे अनाज इनके मुख्य भोजन हैं। ये सर्वभक्षी होते हैं परन्तु गाय का मांस प्रत्येक दशा में वर्जित है।

गोंड लोग छोटे-छोटे स्वकुल के समूहों में बंटे होते हैं।

'द्योतुल' गोंडो का सभागार हैं जहाँ पर विवाह पूर्व लड़के तथा लड़कियां मिलती है। गोंडो का मुख्य व्यवसाय कृषि तथा आखेट है।

भील भारत की तीसरी बड़ी जनजाति है जिसकी जनसंख्या लगभग 25 लाख है।

भीलो का मुख्य निवास क्षेत्र आरावली, विन्ध्याचल, सतपुड़ा पर्वत एवं खेत कोटा का पठार

है।

इनका कद छोटा है, चेहरा गोल, नाक मध्यम चौड़ी तथा त्वचा हल्की भूरी होती है।

भीलों का मुख्य भोजन गेहूं चावल, मक्का, दालें तथा सब्जियाँ है।

ये त्योहारों के अवसरों पर मांस भी खाते हैं।

भीलों के घरों को 'कू' (Koo) तथा वस्त्र को 'फालू' कहा जाता है।

भीलों की सामाजिक व्यवस्था बड़ी संगठित होती है और वृद्ध घर का मुखिया होता है।

प्रत्येक गांव का अपना पुजारी, कोतवाल, चरवाहा तथा ढोल बजाने वाला होता है।

ये एक विवाह में विश्वास करते हैं। ये हिन्दू देवी-देवताओं को मानते हैं।

थारू एक मिश्रित जनजाति है जो कि शिवालिक पहाड़यों के तराई क्षेत्र में पाये जाते हैं।

थारू द्राविड़ प्रजाति से संबंधित है।

इनका मुख्य भोजन चावल तथा मछली हैं।

थारुओं के दरवाजों को 'फंड़की' कहा जाता है।

थारू समाज मातृत्व प्रधान है तथा लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि है।

थारू लोग प्रेतात्माओं की पूजा करते हैं।

ये हिन्दू देवी-देवताओं की भी पूजा करते हैं।

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    अनुक्रम

  1. अध्याय - 1 मानव भूगोल : अर्थ, प्रकृति एवं क्षेत्र
  2. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  3. उत्तरमाला
  4. अध्याय - 2 पुराणों के विशेष सन्दर्भ में भौगोलिक समझ का विकास
  5. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  6. उत्तरमाला
  7. अध्याय - 3 मानव वातावरण सम्बन्ध
  8. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  9. उत्तरमाला
  10. अध्याय - 4 जनसंख्या
  11. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  12. उत्तरमाला
  13. अध्याय - 5 मानव अधिवास
  14. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  15. उत्तरमाला
  16. अध्याय - 6 ग्रामीण अधिवास
  17. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  18. उत्तरमाला
  19. अध्याय - 7 नगरीय अधिवास
  20. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  21. उत्तरमाला
  22. अध्याय - 8 गृहों के प्रकार
  23. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  24. उत्तरमाला
  25. अध्याय - 9 आदिम गतिविधियाँ
  26. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  27. उत्तरमाला
  28. अध्याय - 10 सांस्कृतिक प्रदेश एवं प्रसार
  29. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  30. उत्तरमाला
  31. अध्याय - 11 प्रजाति
  32. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  33. उत्तरमाला
  34. अध्याय - 12 धर्म एवं भाषा
  35. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  36. उत्तरमाला
  37. अध्याय - 13 विश्व की जनजातियाँ
  38. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  39. उत्तरमाला
  40. अध्याय - 14 भारत की जनजातियाँ
  41. ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
  42. उत्तरमाला

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